जिंदगी बहार है,
बहार बांटते चलो,
सांस के सधे हुए,
सितार बांटते चलो !
जिंदगी बहार है ……..
मौत का पता नहीं,
न उम्र का पता यहां,
क्या पता नसीब का,
जिन्दगी कटे कहां ,
गांव गली,नगर,डगर,
प्यार बांटते चलो,
जिंदगी बहार है,
बहार बांटते चलो…….
हम सभी को शैशव, बाल,युवा और अधेड़ अवस्था से होते हुए वृद्धावस्था तक पहुंचना होता है । वृद्ध होने पर हमारा शरीर कमजोर हो जाता है । इंद्रिय व शारीरिक चेतना शिथिल होकर व्यक्ति दूसरों पर निर्भर होने लगता है। ऐसे में यदि घर वालों की ओर से उपेक्षा और उपहास मिले तो जीवन, नरक सा प्रतीत होने लगता है । वृद्धजनों की न कोई खास इच्छा नहीं होती और न ही कोई अधिक खर्च होता है । उनकी एक ही चाहत होती है कि उनके बच्चे, उनके परिवार के सदस्य और परिचय के लोग उनकी अवहेलना और उपेक्षा न करें । उन्हें थोड़ा प्यार दें, सम्मान दें और बदले में भरपूर आशीर्वाद लें । थोड़ा प्यार और अपनेपन की चाहत उनमें भी होती है । लेकिन उनकी इस भावनात्मक चाहत की पूर्ति भी शायद ही पूरी हो पाती है । क्योंकि आज आंकड़े बताते हैं कि बुजुर्ग व्यक्ति अपने ही घर परिवार में सबसे अधिक उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं ।
वास्तव में बुजुर्ग व्यक्तियों की परिवार में अनदेखी करना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है । यह काम हम जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काटने जैसा है। बुजुर्गों का तिरस्कार करते समय भूल जाते हैं कि एक दिन उन्हें भी इस अवस्था से गुजरना है ।
याद रहे आज जो अपने बुजुर्गों से अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं वे अपने भविष्य के लिए कांटे ही बो रहे हैं, जिस पर कल उन्हें भी चलना पड़ेगा । इस बात को कभी भूल नहीं और अपने घर के बड़े-बुज़ुर्गों से प्यार करें उन्हें अपनापन दें ।