नागपुर : कठपुतली का खेल राजस्थान के अलावा पूरे भारत में प्रसिद्ध है। बच्चों के साथ-साथ बड़े भी इसे काफी पसंद करते हैं। बहुत कम कलाकार अब इस परंपरा को कायम रखे हुए हैं। आधुनिक युग मेंे यह खेल लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है। अब कठपुतलियों का खेल बहुत कम देखने को मिलता है। इस कला को प्रोत्साहित करने के लिए 25 मार्च को ” विश्व कठपुतली दिवस ” मनाया जाता है। इसके लिए कठपुतली कार्यशाला एवं प्रदर्शन का आयोजन दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र तथा सांस्कृतिक कार्य संचालनालय, महाराष्ट्र शासन के संयुक्त तत्वावधान में केंद्र के मुक्तांगण में किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलन कर किया गया। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्य संचालनालय, महाराष्ट्र शासन की सहायक निदेशक अल्का तेलंग, दमक्षेसां केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी दीपक पाटील, शशांक दंडे, श्रीकांत देसाई उपस्थित थे।
कार्यशाला में सुबह कठपुतली बनाने के बारे में सिखाया गया और शाम 4 बजे से कठपुतली प्रदर्शन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुवात गणेश वंदना से हुई। गणेश वंदना भी कठपुतली के माध्यम से की गई। उसके बाद कार्यक्रम में पारंपरिक कठपुतली प्रदर्शन बसंता घोरई द्वारा बेनी पुतुल की प्रस्तुति दी गई और रिंटी सेनगुप्ता द्वारा कथा कथन कठपुतली के माध्यम से घोस्ट स्टोरी की प्रस्तुति दी गई। यह संपूर्ण कार्यक्रम मीना नाईक द्वारा किया गया।