भूजल: जलापूर्ति का एक ससक्त संसाधन

Date:

नागपुर: भूजल एक अदृश्य संसाधन, जिसने मानव सभ्यता का भूगोल ही बदल दिया, किसी समय नदियों के किनारे विकसित होने वाली मानव सभ्यताओं ने भूजल के अस्तित्व को पहचानते ही अपने पैर पसारने शुरू कर दिए और शीघ्र ही समस्त भूमंडल पर छा गए। उनकी आवश्यकता का पानी की आपूर्ति छोटे-छोटे कुआं से पूरी होने लगी।

भूजल स्वतंत्र भारत में हरित क्रांति हो या श्वेत क्रांति की सफलता का प्रमुख कारक रहा है इसका अनुमान आप इन्हीं आंकड़ों से लगा सकते हैं, जहां सन 1984 के पहले लगभग 58 लाख 75 हज़ार कूप और नलकूप थे, वे सन 2013-14 के आते-आते दो करोड़ 5 लाख से भी ज्यादा हो गए। हम इन्हीं कूपों और नलकूपों से सिंचाई की बदौलत देश की खाद्य सुरक्षा में सक्षम हुए हैं। आज भी देश की 85% से अधिक ग्रामीण पेयजल आपूर्ति एवं 60% से अधिक सिंचाई का प्रमुख एवं अकेला स्रोत भूजल है। अलावा, देश के लगभग सभी महानगरों, नगरों तथा औद्योगिक क्षेत्रों की लगभग 50% पूरक जलापूर्ति का भी स्रोत भूजल है। इसका अनुमान आप विश्व बैंक की इन्हीं आंकड़ों से लगा सकते हैं कि विश्व में जितना भी भूजल का दोहन होता है उसका 25% केवल भारत में होता है। जबकि, हमारे पास दुनिया के कुल भौगोलिक क्षेत्र का केवल 2.4% हिस्सा है तथा उपयोग हेतु जल का लगभग 4% हिस्सा है और हमारी दुनिया की कुल आबादी में हिस्सेदारी 17% से अधिक है।

भारत एक विकासशील देश है, बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगिक करण तथा जीवन शैली के बदलाव ने आज पानी की मांग को अनेक गुना बढ़ा दिया है। स्वतंत्रता के बाद सन 1947 में भारत में जहां प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 6000 घन मीटर से ज्यादा थी आज बढ़ती जनसंख्या के साथ घटकर 2011 के आते-आते 15,00 घन मीटर से कुछ ज्यादा रह गई है। ये आकड़े तो पूरे देश पानी की औसत उपलब्धता के हैं। जबकि भारत एक भौगोलिक, भूवैज्ञानिक, जलवायु, मौसम, संस्कृति आदि इत्यादि विविधताओं से भरा देश है, जहां देश के पूर्वी हिस्से में 10,000 मिली मीटर से भी ज्यादा बारिश होती है, तो दूसरी ओर पश्चिमी कोने में 100 मिलीमीटर से कम बारिश। इसी एक तरफ उत्तर में गंगा ब्रह्मपुत्र यमुना की तराई हिस्सों जलोढ़(Alluvial) जलभृतों (Aquifers) में अत्यधिक भूजल की उपलब्धता है, वहीं दक्षिणी प्रायद्वीप के पठारों एवं अन्य हिस्सों में पाए जाने वाले कठोर पत्थर में भूजल की अति अल्प उपलब्धता है। यह कहा जाए तो देश में कुल उपलब्ध भूजल का भी समान वितरण नहीं है, जिससे देश के अधिकांश हिस्सों में सतत जलापूर्ति एक चुनौती बनती जा रही है। आधुनिक तंत्रज्ञान तथा अल्प ज्ञान और खुदगर्जी ने इस समस्या को विकराल रूप दे दिया है, परिणाम स्वरूप, आज भारत के अनेक हिस्सों में भूजल के अति दोहन के गंभीर परिणाम दिखने लगे हैं। और गर्मी तो दूर जनवरी-फरवरी के अंत तक देश के अनेक हिस्सों में कुएं नलकूपों का सूखना देखा जा रहा है। खेती तो दूर पीने के पानी की आपूर्ति भी सरकार के लिए एक चुनौती बन जाती है

संपूर्ण देश में सतत जलापूर्ति के उद्देश्य से भारत सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना से “जलभृत प्रबंधन पर राष्ट्रीय परियोजना” (National Programme on Aquifer Management) की शुरुआत की जो 13वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक पूरी होनी है। इस परियोजना के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी भारत सरकार के “जल शक्ति मंत्रालय” के आधीन “जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग” में स्थित “केंद्रीय भूजल बोर्ड” को दी गई है। एस परियोजना मे आज तक देश में केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा एवं देश के अन्य सरकारी एवं गैर सरकारी विभागों द्वारा भूजल सर्वेक्षण, आवर्धन (Augmentation) एवं प्रबंधन के लिए किए गए कार्यो के आंकड़ों को एकीकृत कर डाटा गैप विश्लेषण कर तथा आवश्यक गैप में डाटा जनरेशन कर एक ऐसी रिपोर्ट और नक्शे तैयार करना जिससे भूजल प्रबंधन का एक विस्तृत रोड मैप बनाया जा सके। आज देश के अधिकांश तालुकाओ का विशेषतः उन तालुकाओ का जहां सतत जलापूर्ति का दबाव ज्यादा है और अति दोहन की वजह से पिछले दशकों में जलस्तर तेजी से नीचे गया है कि रिपोर्ट तैयार की जा चुकी है। ये रेपोर्ट्स सरकार द्वारा चलाए गए “जल शक्ति अभियान” में जल प्रबंधन के उपाय बताने में मील का पत्थर साबित हो रही है। इन रेपोर्ट्स में कठोर पत्थर वाले क्षेत्रों में 200 मीटर की गहराई तथा मुलायम पत्थर वाले क्षेत्रों में 300 मीटर की गहराई तक मिलने वाले विभिन्न जलभृतों (Aquifers) का आकलन, उनमे पानी की उपलब्धता, उससे निकाले जाने वाले पानी की मात्रा तथा उनके प्राकृतिक रूप से होने वाले पुनर्भरण तथा विभिन्न स्रोतों से होने वाले पुनर्भरण का सही आकलन प्रस्तुत किया गया है। क्षेत्र में पानी के अति दोहन का परिणाम स्वरूप भूजल स्तर की निरंतर गिरावट से निपटने की उपाय योजना भी बताई गई है। इन उपाय योजनाओ मे जलापूर्ति को कैसे आवर्धित(Augment) करना साथ साथ किस तरह पानी की मांग में कमी लाकर भूजल प्रबंधन किया जा सकता है का सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया गया है। इसके आलावा, उच्च शोषित तालुकाओं में भूजल के दोहन को कैसे नियंत्रित किया जाये के भी उपाय सुझाए गए हैं। इन योजनाओं को बनाते वक्त उस क्षेत्र की भौगोलिक भूवैज्ञानिक तथा जलवायु परिस्थितियो आदि का वैज्ञानिक अध्ययन कर ही भूजल प्रबंधन योजना सुझाव गई है। जैसे कि भूजल आवर्धन (Augmentation) हेतु वास्तव में कितने पानी की जरूरत है, उस क्षेत्र के लिए कौनसी पुनर्भरण संरचना उपेरयुक्त होगी, उसकी की दक्षता क्या है आदि इत्यादि को ध्यान रखकर उस क्षेत्र के लिए उपाय योजना समझाई गई है। इसी प्रकार सिंचाई हेतु पानी की मांग को कैसे कम किया जाए के लिए उस क्षेत्र की वर्तमान फसल पद्धति तथा उसमें लगने वाली सिंचाई हेतु पानी का आकलन वैज्ञानिक पद्धति से कर विभिन्न उपाय सुझाए गए है। अगर, अधिक पानी की मांग वाली फसल की जगह उतनी ही आमदनी देने वाली कम पानी की मांग वाली फसल को लगाना या आज के समय में आधुनिक तंत्रज्ञान का उपयोग कर ड्रिप या स्प्रिंकलर तकनीकी का उपयोग कर कैसे पानी मांग को कम कर पानी की बचत करना आदि उपाय सुझाए गए हैं.

अगर जब प्रवाही सिंचन पद्धती को छोड़ कर ठिबक (Drip) सिंचन तकनीकी को अपनाते हैं तो ना केवल हम सिंचाई में लगने वाले पानी की मात्रा का 44% से 58% तक बचत करते हैं बल्कि हमारे उत्पन्न में भी 12% से 25% तक की वृद्धि पाते हैं। इस प्रकार हम 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र की केवल गन्ने की फसल मे ठिबक (Drip) सिंचन तकनीकी अपनाने के बाद लगभग 100 दस लक्ष्य घन मीटर पानी बचाया जा सकता है। इसके अलावा 25% उत्पन्न में भी बढ़ोतरी होगी वह अलग। इस प्रकार अनेक फसलों मेकर ठिबक (Drip) सिंचन तकनीकी को अपनाकर करोड़ो लिटर पानी बचाया जा सकता है। इसका प्रत्क्ष्य उदारहण भुसावल (जलगांव जिला) महाराष्ट्र का केला उत्पादन क्षेत्र जहां आज शत-प्रतिशत ठिबक सिंचन का उपयोग कर न केवल उच्च दर्जे का रिकॉर्ड केला उत्पादन किया जा रहा है, बल्कि भूजल के गिरते स्तर पर भी आज काबू पाया जा रहा है

क्योंकि भूजल एक कॉमन पूल संसाधन है “जन सहयोग” से कैसे प्रबंधन किया जाए इस तथ्य पर सरकार का इस परियोजना के माध्यम से प्रमुख जोर है। इस परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा जन जागरूकता, प्रशिक्षण कार्यक्रमों का भी समय-समय पर गांव, तालुका एवं जिला स्तर पर आयोजन किया जाता है। जिसके परिणाम बड़े ही उत्साहवर्धक रहे है। लोगो मे जागरूकता का निर्माण हो रहा है, इसका उदाहरण “हिवरे बाजार” हो या “रालेगांव सिद्धि” या वर्धा जिले का “तामसवाड़ा” गांव जहां कभी पानी की कमी से ‘कृषि’ जीवन यापन के प्रमुख कारण होने का अधिकार खो चुका था। ग्रामीण रोजी-रोटी की तलाश में गांव छोड़कर मजदूरी करने पर विवश थे, वहां आज, वह भूजल प्रबंधन से आज ग्रामीण न केवल ‘कृषि’ से अपना परिवार चला रहे हैं बल्कि अन्य चार परिवारों को भी अपने यहां मजदूरी का कार्य देकर उनके परिवारों का भी भरण पोषण कर रहे हैं। देश मे ऐसे कई गांव है जहां ग्रामीणों ने “जनसहयोग” के माध्यम से एक कुशल नेतृत्व मे अपने गाँव के भूजल को संरक्षित तथा उचित प्रबंधन कर एक ऐसा मुकाम हासिल किया कि आज वे अन्य के लिए आदर्श बन गए और यह सब संभव हुआ भूजल के “जन सहयोग से प्रबंधन” द्वारा
अगर आप हिवरेबाजार अहमदनगर महाराष्ट्र परएक नज़र डालें तो आपको विश्वास नहीं होगा कि यह वही अकाल पीड़ित, बंजर हिवरे बाजार गांव हैं जो स्वयं कभी अपने अस्तित्व को नहीं बचा पा रहा था। आज एक कुशल नेतृत्व में जन सहयोग के माध्यम से किए गए जल संरक्षण के कार्यों से ना केवल आत्मनिर्भर है बल्कि अन्य को रोजगार देने में भी सक्षम है। जहां कभी केवल ज्वार बाजरा की खेती होती थी वहां आज अनाज के अलावा फल सब्जी और फूल की खेती है। एक सामी जहां दुग्ध उत्पादन गांव की मांग को पूरा करने में असक्षम था वहां आज दुग्ध व्यवसाय दैनिक आय का प्रमुख साधन बन गया है। और यह बात प्राय सभी मीडिया में प्रचारित है कि इस गांव में 70% से अधिक परिवार करोड़पति हैं, तथा जो नहीं है वह शीघ्र ही करोड़पति क्लब में शामिल होने की कगार पर है।

इसी प्रकार महाराष्ट्र के वर्धा जिले सेलु तालुका का अत्यंत दुर्गम आदिवशी गाँव तामसवाड़ा जो ऊंचाई (Ridge) पर स्थित होने के कारण सरकार द्वारा प्रदत सिंचन सुविधाओं से वंचित रहा। यहां पानी की कमी से कृषि कभी रोजी रोटी का प्रमुख साधन नहीं रहा, इस गांव में भी कुशल नेतृत्व में जल संवर्धन के कार्यों के साथ नाले के उद्गम से गहराई करण और चौड़ाई करण के कार्यों से गांव का कायाकल्प हो गया। जो कुए कभी फरवरी के अंत तक सूख जाया करते थे, उनमें आज वर्ष भर पानी रहता है। जहां कभी केवल 190 हेक्टेयर में खरीफ फसल ही होती थी वहां न केवल खरीफ के क्षेत्र में इजाफा होकर 305 हेक्टेयर हो गया बल्कि आज रवि फसल में 15 हेक्टेयर का क्षेत्र भी आ गया है। इसके साथ आज सीमित फसल वाले इस गांव में 16 हेक्टेयर में गन्ना 6 हेक्टेयर में बागवानी और 6 हेक्टेयर में फलों की भी फसल ली जा रही है। इसके अलावा सबसे दिलचस्प जहां कभी 24 हेक्टेयर भूमि बरसात में बाढ़ की वजह से खेती के लिए उपलब्ध नहीं थी, वह भी आज जल संवर्धन के कार्यों से खेती योग्य हो गई तथा आज गांव की प्रति परिवार मासिक आय में 3 गुना इजाफा दर्ज किया गया है, वह भी केवल 5 वर्ष के समय में। आज यह गांव एकीकृत कृषि कार्यों जो केवल पानी की उपलब्धता बढ़ने से संभव हो पाया है के कारण आर्थिक और सामाजिक विकास की ओर अग्रसर है.

भूजल प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक ऐसा संसाधन है जिसको सीमाओं में बांधना असंभव है। यह एक कामन पूल संसाधन है जिसका नियोजन केवल जनसहयोग के माध्यम से सप्लाई साइड और डिमांड साइड मैनेजमेंट यानी आपूर्ति में कृत्रिम पुनर्भरण द्वारा वृद्धि तथा पानी की मांगों को कम करके किया जा सकता है। अगर हीवरे बाज़ार, रालेगांव सिद्धि और तामसबाड़ा या अन्य इसी तरह के गांवो को आदर्श मानकर इनके जैसे प्रयास देश के सभी गांव में करें तो वह दिन दूर नहीं जब हम संपूर्ण देश में सतत जलापूर्ति में आत्मनिर्भर होंगे तथा भविष्य में आने वाली मांग को भी पूरा करने में सक्षम होंगे। इसी लक्ष्य को ध्यान मे रख कर देश के इस (भूजल) सबसे बड़े संसाधन की सुरक्षा, संवर्धन एवं प्रबंधन हेतु सरकार द्वारा “जलशकती अभियान” एवं अटल भूजल योजना” जैसी महत्वपूर्ण योजनाये चलायी जा रही है, जिसके परिणाम जल प्रबंधन की दिशा मे एक मील का पत्थर साबित होंगे।

डॉ. प्रभात कुमार जैन
क्षेत्रीय निदेशक
केंद्रीय भूजल बोर्ड, मध्य क्षेत्र
नागपुर

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

Jallianwala Bagh Massacre: 105 Years of Tragedy

Back on April 13, 1919, something tragic happened in...

Celebrate Bhimrao Ramji Ambedkar Jayanti Day 2024

Each year, April 14th in India is a time...

BMW Group India Announced the Appointment of Gallops Autohaus as Its Dealer Partner for Nagpur.

After successful operations in Nagpur since 2014, Munich Motors...

Happy Baisakhi 2024: Date Significance,Top Wishes & Greetings, More…

Let's look at the Baisakhi Festival 2024. You might...