नागपुर : सिकलसेल के नियंत्रण के लिए, जिला प्रशासन ने एक परियोजना के रूप में नागपुर में कॉलेज स्तर पर एक सिकल सेल निरीक्षण परियोजना शुरू की थी। इनमें से लगभग 6% छात्रों में सिकलसेल बीमारी से ग्रस्त पाए गए , लेकिन विभिन्न शासकिय सिस्टम में कमी होने के कारण यह परियोजना शुरू हो हुई थी लेकिन छात्रों की जांच बंद होने के कारण रोग कैसे नियंत्रण में रहेगा? यह सवाल उठाया गया है।
राज्य में सिकलसेल के मरीज़ सबसे ज्यादा विदर्भ में पाए जाते है | उपराजधानी नागपुर के उत्तरी भाग के कुछ हिस्सों में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कुछ क्षेत्र बीमार प्रतीत होते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए, दो सिकल सेल मरीज़ या जिन्हें सिकलल्स हैं ऐसे लोगो की आपस में शादी नहीं करवानी चाहिये। जिससे उनके बच्चे में भी यह अनुवांशिक बीमारी होने का खतरा ज्यादा होता है | नागपुर में सिकलसेल यह बीमारी पर नियंत्रण करने के लिए जिल्हा प्रशासन ने इंदिरा गाँधी शासकिय मेडिकल महाविद्यालय में पूरी तरीके से नयी योजना लायी है और अस्पताल की मदद से, 2016 से तीन साल के लिए, कॉलेजों ने छात्रों सिकलसेल निरीक्षण परियोजना का निरीक्षण किया | जिसके लिए मेयो अस्पताल को स्वास्थय विभाग को फण्ड जारी किया गया है | प्रति छात्र यह परीक्षा २० रुपये में की जानेवाली थी |
2016-17 में, 20,000 छात्रों की शहर में 53 कॉलेजों में 63 शिविरों के साथ जांच की गई। जिसमे यह 1,200 छात्रों के साथ एक सिकल वाहक होने का निदान किया गया था। परियोजना के तहत प्रत्येक वर्ष बीमारी के लक्षण पाए जाने के बाद इन छात्रों को सलाह और परामर्श दिया गया।
इसलिए, इस परियोजना को तीन वर्षों के लिए लागू किया जाना था, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने कुछ कठिनाइयों को बनाया है और योजना से भाग को हटा दिया है। सिकलसेल एनीमिया लाल रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाली एक बीमारी है | यह एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में अनुवांशिक और संक्रमण है। इनमें से कई रोगियों को एलर्जी, रक्त स्रावी और अन्य कठिनाईयों को सहन करना पड़ता है। कुछ लोगों को समय-समय पर रक्त की कमी के कारण रक्त चढ़वाना
पड़ता है।
-By Apurva Nayak